सरकार भानु प्रताप तिवारी
महराजगंज वैसे तो यह यात्रा नही यह मेरा एक सपना था। कि हम एवरेस्ट की चरणों मे जाए, हमारे एक मित्र चन्द्रजीत पाण्डेय ने जैसे कहा कि हमे एवरेस्ट चलना है , और हम भी तुरन्त तैयार हो गए आज हम दोनों निकल लिए एवरेस्ट के लिए भैरहवा से काठमांडू के लिए निकल पड़े। और काठमांडू से सुबह 5 बजे निकल लिए सैलरी के लिए रात में हम लोग सैलरी में रुके और सुबह सैलरी से पीठ पर 20 kg का वजन और हाथ मे एक डंडा लिए हम निकल लिए वजन कम कर नही सकते क्योंकि जितना वजन कम करते ख़र्च बढ़ जाता पैदल लगातार 6 दिन पैदल चलने के बाद आज हम नामचे पहुँचे 3600मीटर
वहाँ से जब हम degboche 4500 मीटर पहुँचे तो लगा अब वापस चल चले क्योकि ऑक्सिजन हमदोनों ले नही पा रहे थे एक दूसरे का बस हौसला बढ़ा रहे थे रात में तो ऐसा लगा की हम मर ही जायेंगे पर एवेरेस्ट के कदमो को चूमना था हम दोनों ने फैसला बदला और दिमाग और शरीर को तैयार किया की आज नही कर पाएंगे तो दोबारा कभी मौका नही मिलेगा सुबह हम दोनों ने कहा कि इतिहास ऐसे नही बनती और हम इतिहास बना रहे है
फिर बिना सोचे वजन लादा और निकल गया
अक्सर लोग इस यात्रा के लिए लाखों के पैकेज लेते हैं पोटर(सामान ढोने वाला) लेते हैं गाइड लेते है
लेकिन हम भी भैया महराजगंज के हम ही पोटर थे हम ही गाइड थे क्योकि हम मध्यमवर्गीय परिवार से है Zबहुत कम पैसे में इसे पूरा करना है।
और आज हम जितेंद्र शर्मा व हमारे परम मित्र चन्द्रजीत पांडेय शेरपा तेनजिंग व हिलेरी साहब के दोस्ती की तरह एवेरेस्ट को चूम लिया