भारत और विश्व के विभिन्न देशों में प्रतिवर्ष 13 अगस्त को अंग दान दिवस मनाया जाता है। किसी व्यक्ति के जीवन में अंग दान के महत्व को समझने के साथ ही अंग दान करने के लिये आम इंसान को प्रोत्साहित करने के लिये सरकारी संगठन और दूसरे व्यवसायों से संबंधित लोगों द्वारा हर वर्ष यह दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य अंगदान के बारे में लोगों में जागरूकता फैलाना है। मौत के बाद अंगदान करने की संख्या काफी कम है। कोरोना काल में हालात और खराब हो गए हैं। दिल्ली में पिछले डेढ़ साल से अंगदान करने वालों की संख्या आधी ही रह गई है।
डॉक्टरों का कहना है कि एक व्यक्ति अपना दिल, दो फेफड़े, अग्नाशय (पैंक्रीयाज), दो गुर्दे (किडनी), कॉर्निया (आंखें) और आंत (इंटेस्टाइन) दान करके आठ लोगों के जीवन को बचा सकता है। ऐसे में लोगों को अंगदान के प्रति जागरूक करने की जरूरत हैं। आकाश अस्पताल के किडनी ट्रांसप्लांट विभाग के डॉक्टर विकास अग्रवाल का कहना है कि देश में हर साल 1.50 लाख किडनी मरीजों को प्रत्यारोपण की जरूरत होती है, लेकिन महज 12 हजार प्रत्यारोपण की हो पाते हैं।
मानव द्वारा दान करने योग्य अंग निम्नलिखित है:-
किडनी
फेफड़ा
हृदय
आँख
कलेजा
पाचक ग्रंथि
आँख की पुतली की रक्षा करने वाला सफेद सख्त भाग
आँत
त्वचा ऊतक
अस्थि ऊतक
हृदय छिद्र
नसें
जन्म से लेकर 65 वर्ष तक के व्यक्ति जिन्हें ब्रेन डेड घोषित किया जा चुका हो, उनका अंगदान किया जा सकता है। किडनी को 6-12 घंटे, लीवर को 6 घंटे, दिल को 4 घंटे, फेफड़े को 4 घंटे, पेंक्रियाज को 24 घंटे और टिश्यू को 5 साल तक सुरक्षित रखा जा सकता है। डॉक्टरों के मुताबिक, अंगदान करने की कोई निश्चित उम्र नहीं होती।
प्राकृतिक मृत्यु की स्थिति में कॉर्निया, दिल के वॉल्व, त्वचा, और हड्डी जैसे ऊतकों का दान किया जा सकता हैं, लेकिन ब्रेन डेड होने की स्थिति में केवल लीवर, गुर्दे, आंत, फेफड़े और अग्नाशय का दान ही किया जा सकता है। अठारह वर्ष से कम आयु के अंगदानकर्ताओं के लिए अंगदान करने से पहले अपने माता-पिता या अभिभावकों की सहमति प्राप्त करना आवश्यक होता हैं। कैंसर, एचआईवी, मधुमेह, गुर्दे की बीमारी या हृदय की बीमारी होने पर अंगदान करने से बचना चाहिए।
