बॉलीवुड का वो खलनायक जिसने बदले सिनेमा के मायने

हिंदी सिनेमा में प्राण आए तो हीरो बनने थे लेकिन नाम कमाया खलनायक बनकर। अभिनेता प्राण की जिंदादिली और संजीदा मिजाज को उनके चाहने वाले लोग बेहद पसंद करते थे। उनका जन्म एक सरकारी ठेकेदार लाला केवल कृष्ण सिंकद के घर 12 फरवरी 1920 को दिल्ली में हुआ था।

फिल्म इंडस्ट्री में उनका लगभग छह दशक लंबा करियर रहा और इस दौरान उन्होंने साढ़े तीन सौ से ज्यादा फिल्मों में काम किया। ‘मधुमति’, ‘जिस देश में गंगा बहती है’, ‘उपकार’, ‘शहीद’, ‘पूरब और पश्चिम’, ‘राम और श्याम’, ‘जंजीर’, ‘डॉन’, ‘अमर अकबर एंथनी’ जैसी सुपरहिट फिल्मों में प्राण ने शानदार काम किया। अपने समय के वह एक चर्चित विलेन रहे, इस वजह से इन्हें ‘विलेन ऑफ द मिलेनियम’ कहा गया। फिल्मों में वे अपने किरदारों को एक अलग रूप दे देते थे। प्राण अपने अभिनय के साथ डायलॉगबाजी में बहुत मशहूर रहे। उन्होंने अपनी जिंदगी में करीब 350 फिल्मों में काम किया।

वे बचपन से ही पढ़ाई में होशियार रहे, खास तौर पर गणित में। प्राण बड़े होकर एक फोटोग्राफर बनाना चाहते थे और इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने दिल्ली की एक कंपनी ‘ए दास & कंपनी’ में अप्रेंटिस भी की। 1940 में लेखक मोहम्मद वली ने जब पान की दुकान पर प्राण को खड़े देखा तो पहली नजर में ही उन्होंने अपनी पंजाबी फिल्म ‘यमला जट’ के लिए उन्हें साइन कर लिया। इसके बाद प्राण ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
प्राण ने लाहौर में 1942 से 46 तक यानी 4 साल में 22 फिल्मों में काम किया। इसके बाद विभाजन हुआ और वो भारत आ गए और फिर यहां उन्हें फिल्मों में बतौर विलेन पहचान मिली। प्राण को हिंदी फिल्मों में पहला ब्रेक 1942 में फिल्म ‘खानदान’ से मिला। दलसुख पंचोली की इस फिल्म में उनकी एक्ट्रेस नूरजहां थीं। इस फिल्म के मिलने से पहले उन्होंने 8 महीने तक मरीन ड्राइव के पास स्थित एक होटल में काम किया था। इन पैसों से वे अपना घर चलाते थे।
प्राण के करियर की प्रमुख फिल्मों में कश्मीर की कली, खानदान, औरत, बड़ी बहन, जिस देश में गंगा बहती है, हॉफ टिकट, उपकार, पूरब और पश्चिम और डॉन हैं। पर्दे पर उनकी मौजूदगी डर पैदा करती थी और इस डर का यह आलम था कि लोगों ने एक समय अपने बच्चों के नाम प्राण रखना छोड़ दिया था। ये उनकी अदायगी का ही करिश्मा था कि दर्शक उनके रोल की वजह से उनसे नफरत करने लगे थे।
प्राण की दुनिया केवल फिल्मों तक ही सीमित नहीं थी। उन्हें खेलकूद में भी बेहद दिलचस्पी थी। पचास के दशक में उनके पास अपनी एक फुटबॉल टीम हुआ करती थी। अभिनेता प्राण को उनके जीवन काल में कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। फिल्म इंडस्ट्री में 60 सालों के अपने करियर से वे बेहद संतुष्ट थे और कहा करते थे कि वे अगले जन्म में फिर से प्राण बनना चाहेंगे।
अमिताभ बच्चन को भी हिट करने में प्राण की ही भूमिका रही। फिल्म ‘जंजीर’ के किरदार विजय के लिए प्राण ने ही निर्देशक प्रकाश मेहरा को अमिताभ बच्चन का नाम सुझाया था। इस फिल्म ने अमिताभ का करियर पलट कर रख दिया था। आपको जानकर हैरानी होगी कि 1960 से 70 के दशक में प्राण की फीस 5 से 10 लाख रुपये होती थी। उस दौर में किसी विलेन को इतनी फीस नहीं मिली। केवल राजेश खन्ना और शशि कपूर को ही उनसे ज्यादा फीस मिलती थी।
प्राण को हिन्दी सिनेमा में उनके योगदान के लिए 2001 में भारत सरकार के पद्म भूषण और इसी साल दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। 12 जुलाई 2013 में 93 साल की उम्र में प्राण ने अंतिम सांस ली थी। प्राण जब तक जिए दूसरों की मदद को हमेशा आगे रहे। प्राण भले ही अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी अदाकारी के चर्चे आज भी होते हैं।

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