केरल हाईकोर्ट: एआरटी भारत में कुछ दशक पहले ही शुरू हुई है। समय के साथ जीवनशैली व व्यक्तिगत पसंद में आए बदलाव को कानून का शासन मान्यता देता है। इसलिए कानून में उचित सुधार बदलाव जोड़ आदि होने चाहिए। इसी क्रम मे यदि एकल महिला अगर सहायक प्रजनन तकनीक (एआरटी) से मां बन रही है, तो बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र के लिए पिता का नाम पूछना मां-बाप के सम्मान के खिलाफ है। केरल हाईकोर्ट ने यह निर्णय देते हुए केरल सरकार को निर्देश दिए कि वह इन मामलों के लिए अलग प्रकार के आवेदन पत्र बनवाए।
याचिका में एक तलाकशुदा महिला ने बताया था कि वह इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) के जरिए गर्भवती हुई है, फिलहाल 8 महीने का गर्भ है। जन्म-मृत्यु पंजीकरण नियमावली 1970 के तहत उसे जन्म प्रमाण पत्र के आवेदन में बच्चे के पिता का नाम लिखना होगा।
उसने कहा, वह चाहकर भी बच्चे के पिता का नाम नहीं बता सकती क्योंकि आईवीएफ में शुक्राणु दानकर्ता का नाम घोषित नहीं किया जा सकता। बच्चे के पिता के नाम का कॉलम खाली छोड़ना उनकी निजता, सम्मान व स्वतंत्रता का हनन है। ऐसे में वह इसे खाली भी नहीं छोड़ेंगी। हाईकोर्ट ने सहमति जताते हुए कहा, एआरटी से मां बनना एकल महिला या किसी भी अभिभावक का अधिकार है। जब पिता का नाम गुप्त है, तो उसे पूछना निजता व सम्मान के मूल अधिकार का उल्लंघन है।
हाईकोर्ट ने कहा कि महिला 8 महीने की गर्भवती है, इसलिए केरल सरकार जल्द उचित कदम उठाए। एआरटी मामलों में एकल अविवाहित मां या अभिभावक के लिए अलग फॉर्म बनवाएं, जिनमें पिता का नाम न पूछे। इनसे बने जन्म प्रमाण पत्रों का दुरुपयोग न हो, इसलिए आवेदक से उनके मामले की जानकारी देता हलफनामा और इसकी पुष्टि करते चिकित्सा दस्तावेज ले सकते हैं। मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करते हुए पिता या पति के नाम पूछते विकल्प में तीसरा विकल्प मां के नाम का भी जोड़ें।
