नई दिल्ली. दूध को सफेद सोना भी कहा जाता है, क्योंकि इसे संपूर्ण आहार का दर्जा मिला हुआ है। इस रिपोर्ट में हम आपको बताते हैं कि दुग्ध दिवस की शुरुआत कैसे हुई? इसका मकसद क्या है और जब आप अपने पसंदीदा मिल्क प्रोडक्ट्स को चुनते हैं तो किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
बता दें कि अब तक लोग गाय, भैंस और बकरी आदि जानवरों के दूध पर निर्भर रहते थे, लेकिन अब वैकल्पिक दूध का सेवन भी काफी बढ़ गया है। अब लोग सोयाबीन के दूध, नारियल के दूध, जई के दूध और भांग के दूध का भी सेवन करने लगे हैं। बाजार में भी पौधों से निकलने वाले दूध की डिमांड काफी बढ़ चुकी है। इसे वीगन मिल्क कहा जाता है। इसके अलावा पैकेट वाला दूध और टेट्रा पैक वाला दूध भी इस वक्त ट्रेंड में है।
जानकारी के मुताबिक, कुछ लोग पौधों या बादाम के दूध को जानवरों के अधिकारों का हवाला देते हुए इस्तेमाल करते हैं। हालांकि, काफी आबादी ऐसी भी है, जो दूध में मौजूद शुगर लैक्टोज पचा नहीं पाती, जिसके चलते वे लोग पौधों या बादाम के दूध को वरीयता देते हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि सामान्य दूध की तरह क्या इस दूध में भी तमाम पोषक तत्व मौजूद होते हैं? अगर कोई शख्स अपने लिए दूध से बने उत्पादों का चुनाव कर रहा है तो उसे किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
जब आप अपने पसंदीदा दूध के उत्पाद चुनते हैं तो क्या आपने कभी सोचा है वह आपकी और आपके परिवार की सेहत के लिए कितना फायदेमंद है? क्या वह पौष्टिक और सुरक्षित है? अहम बात यह है कि भारत में जागरूकता की कमी के चलते सुरक्षित भोजन मिलना सबसे बड़ी चुनौती है। गौरतलब है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। साल 2018-19 में भारत में 188 मिलियन टन दूध का उत्पादन किया था, जबकि 2019-20 में 198 टन दूध का उत्पादन हुआ। हालांकि, कोरोना काल का असर डेयरी सेक्टर पर भी पड़ा, जिसके चलते वित्तीय वर्ष 2020-21 में उत्पादन में काफी गिरावट दर्ज की गई। बता दें कि 2020-21 के लिए यह आंकड़ा 208 मिलियन टन तय किया गया था। गौरतलब है कि देश में जितनी तेजी से डेयरी उत्पादों की खपत में इजाफा हुआ, उतनी ही तेजी से दूध की गुणवत्ता को लेकर चिंता बढ़ रही है।