दोस्ती की मिसाल: 19 साल पहले साल 2002 में आपरेशन पराक्रम में ताजनगरी के जांबाज कैप्टन आशीष देवा ने अपनी जान देश को कुर्बान कर दी। कैप्टन ने सरहद पर दुश्मनों के खिलाफ जंग लड़ी, उनके बलिदान के बाद उनके दोस्तों ने कैप्टन को सम्मान दिलाने के लिए अफसरों से जंग जारी रखा, दोस्तों की मुहिम रंग लाई।
शहीद कैप्टन आशीष देवा की यादों को संजोने के लिए कैप्टन के पिता हरेंद्र देवा के साथ उनके दोस्त विकास सिंह, नासिर हुसैन, अमित कपूर कवायद में लगे रहे। साल 2011 में बोदला चौराहे का नाम तत्कालीन मेयर अंजुला सिंह माहौर ने कैप्टन के नाम पर सड़क का नामकरण शहीद कैप्टन आशीष देवा मार्ग कर दिया। प्रतिमा लगवाने के लिए मुहिम जारी है।
चौराहे के एक कोने पर पत्थर लगा है लेकिन प्रतिमा का इंतजार अब तक है। तीनों दोस्तों का मानना है कि शहीद कैप्टन को वह सम्मान नहीं दिया गया जिसके वह हकदार थे। उसके लिए वह जंग लड़ते रहेंगे। जिस जगह कैप्टन शहीद हुए, कैप्टन के दोस्त कारगिल के उस कालीचक से मिट्टी लेकर आए थे और उससे शहीद स्मारक के पौधों को महकाया था। हमारी कोशिश रही है कि दोस्त के नाम पर स्मारक बने और चौराहे के कोने पर प्रतिमा लगाकर लोगों को उसके बलिदान के बारे में पता चले कि हमें सुरक्षित रखने के लिए उसने अपनी जान दे दी।