बीएचयू: आईएमएस बीएचयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की ओर से हुए एक शोध में यह परिणाम सामने आया है कि कोरोना की जांच अब सैंपल से आरएनए को अलग किए बिना भी की जा सकेगी। इससे जहां एक ओर लैब में कोरोना की जांच में समय की बचत होगी, वहीं पहले की प्रक्रिया के मुकाबले इस नई तकनीक पर किए जाने वाले शोध से खर्च भी बचेगा।
शोध के पूरा होने के बाद इसका प्रकाशन भी एक जर्नल्स में हो चुका है। माइक्रोबायोलॉजी लैब के वायरल रिसर्च एंड डायग्नोसिस लेबोरेट्री (वीडीआरएल) के प्रभारी प्रो. गोपाल नाथ, प्रो. प्रद्योत प्रकाश और लैब के वैज्ञानिक डॉ. मयंक गंगवार इस शोध कार्य में शामिल रहे। डॉ.मयंक ने बताया कि कोरोना सैंपल की जांच के लिए तीन तरह की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
इसमें पहले चरण में नान इंफेक्ट किया जाता है। दूसरे चरण में वायरस का आरएनए-डीएनए जो भी होता है, उसे निकाला जाता है। इसमें आरएनए आईसोलेटेड किया जाता है। डॉ. गंगवार ने बताया कि तीसरे चरण में आरटीपीसीआर मशीन में जांच के बाद पता चलता है कि रिपोर्ट पॉजीटिव या निगेटिव है। इस शोध में यह बताया गया है कि आरएनए निकालने की जरूरत नहीं है। ऐसे ही कोरोना की जांच हो जाएगी।
केवल एक केमिकल को थोड़ा सा ब्वायल कर सीधे जांच के लिए लगाया जा सकता है। शोध में कुछ सैंपल की जांच हुई, जिसमें बेहतर परिणाम आया है। डॉ. मयंक गंगवार ने बताया कि इसका एक फायदा यह भी है कि आटोमेटिक मशीन पर की गई यह जांच एक सैंपल में करीब 150 रुपये खर्च होंगे जबकि साधार मशीन पर होने वाली जांच में 300 रुपये खर्च होते हैं। ऐसे में आने वाले दिन में अगर इस तकनीक से जांच होगी तो धन की भी बचत होगी।
