यूपी: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने नाराजगी जताते हुए कहा- मदरसों का सर्वे मुसलमानों को बदनाम करने का कुप्रयास जिसे स्वीकार्य नहीं किया जायेगा

मदरसों का सर्वे: उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के गैर मान्यता प्राप्त मदरसों में मूलभूत सुविधाओं की स्थिति जांचने के लिए उनका सर्वेक्षण कराने का फैसला किया है l मदरसा बोर्ड के चार महत्वपूर्ण प्रस्तावों को शासन ने मंजूरी देते हुए आदेश जारी कर दिया है। योगी सरकार की इस घोषणा का कई मुस्लिम नेताओं और राजनीतिक दलों ने विरोध किया था।

इसी के तहत ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि मदरसों के सर्वे कराने का सरकारी आदेश सिर्फ मदरसों को बदनाम करने और देशवासियों के बीच संदेह पैदा करने की घृणित साजिश है। बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि धार्मिक मदरसों का उज्जवल इतिहास रहा है। इन मदरसों में पढ़ने और पढ़ाने वालों के लिये चरित्र निर्माण और नैतिक प्रशिक्षण चौबीस घंटे किया जाता है।
स्वतंत्रता के बाद भी ये संस्थान देश के सबसे गरीब तबके को शिक्षा प्रदान करने में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। मौलाना ने कहा कि बोर्ड की मांग है कि सरकार इस तरह के सर्वे कराने का आदेश वापस ले। अगर सर्वे को कराया जाना जरूरी है तो केवल मदरसों या मुस्लिम संस्थानों तक सीमित न रखा जाए बल्कि देश के सभी धार्मिक और गैर धार्मिक संस्थानों का निश्चित सिद्धांत के तहत सर्वेक्षण किया जाए। मौलाना ने कहा कि केवल मदरसों का सर्वे मुसलमानों को बदनाम करने का कुप्रयास है जिसे स्वीकार्य नहीं किया जा सकता है।

मदरसों में पढ़ने और पढ़ाने वालों ने कभी आतंकवाद और सांप्रदायिक नफरत पर आधारिक कार्य नहीं किया है। हालांकि सरकार ने कई बार इस तरह के आरोप लगाए, लेकिन सभी आरोप झूठे पाए गए। रहमानी ने कहा कि सत्ताधारी दल के पुराने और प्रभावशाली नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भी गृहमंत्री रहते हुए स्वीकार किया था कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरू, एपीजे अब्दुल कलाम और मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसे नेता मदरसों से शिक्षा हासिल कर निकले थे। आजादी की लड़ाई के दौरान मदरसों से निकले विद्वानों, उलमा ने असाधारण बलिदान दिया है।