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एलयू: मूट कोर्ट कमिटी ने किया एस के सिंह मेमोरियल नेशनल क्लाइंट काउंसलिंग प्रतियोगिता का आयोजन

लखनऊ विश्वविद्यालय के नवीन परिसर स्थित विधि संकाय की मूट कोर्ट कमिटी द्वारा प्रथम प्रोफेसर एस के सिंह मेमोरियल नेशनल क्लाइंट काउंसलिंग प्रतियोगिता का आयोजन किया गया । प्रतियोगिता में मुख्य अतिथि इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस के डी शाही जी उपस्थित रहे । बतौर गेस्ट ऑफ ऑनर मोरगन कैपिटल कंपनी में मैनेजिंग डायरेक्टर के रूप में कार्यरत लखनऊ विश्वविद्यालय के ही पूर्व छात्र  प्रियांशु कुमार मौजूद रहे । विशेष अतिथि प्रोफेसर एस के सिंह के सुपुत्र डॉक्टर विजय विक्रम सिंह और डॉक्टर विकास विक्रम सिंह कार्यक्रम में उपस्थित रहे।

आज के इस समारोह मे लखनऊ यूनिवर्सिटी के विधि संकाय के प्रमुख एवं विभागाध्यक्ष प्रोफेसर सी.पी. सिंह जी मौजूद रहे। लखनऊ विश्विद्यालय मूट कोर्ट एसोसिएशन की शिक्षिका संचालिका डॉ विनीता काचर ने उपस्थित सभी अतिथियों का स्वागत किया और और प्रोफेसर एस के सिंह के बारे में बताया कि वह अपने साथियों के साथ सदा सहयोग करते थे। इसके पश्चात विधि संकाय के विभाग अध्यक्ष एवं संकाय अध्यक्ष प्रोफेसर सी पी सिंह ने इस प्रतियोगिता को कराए जाने पर गौरव जताया साथ ही प्रोफेसर एसके सिंह के विधि के क्षेत्र में योगदान को भी बताया । उन्होंने कहा कि विधि संकाय सदा से ही देश के चुनिंदा श्रेष्ठ संकायो मे से एक रहा है ।

मुख्य अतिथि रिटायर्ड जस्टिस के डी शाही ने विधि संकाय के द्वारा बुलाए जाने पर प्रसन्नता जताई और प्रोफेसर एस के सिंह के व्यक्तित्व से जुड़े अपने विचार साझा किए । उन्होंने बताया कि अधिवक्ता का कार्य डॉक्टर के समान होता है उसे सदा अपने क्लाइंट को सही और उचित सलाह देनी चाहिए एवं गरीब , बूढ़े और लाचार लोगों को निशुल्क सेवा एवं परामर्श प्रदान करना चाहिए । छात्रों को ज्ञान , शिष्टाचार , भाषा और व्यक्तित्व से सदा अच्छा रहने की भी सलाह दी ।

प्रियांशु कुमार जी की विधि संकाय के ही छात्र रहे हैं उन्होंने विधि संकाय के वर्तमान डीन प्रोफेसर सी पी सिंह की सराहना की और उन्हें सहयोगी और बहुत ही अच्छे व्यक्तित्व के अध्यापक बताया । उन्होंने बताया कि अच्छा अधिवक्ता वही होता है जो क्लाइंट की पीड़ा को समझ तथा उसे संयम में रहना सिखा सके । साथ ही कानून को आसान शब्दों में समझाएं और अच्छी एवं सही सलाह दें ।

प्रोफेसर एस के सिंह जी के सुपुत्र विजय विक्रम सिंह ने अपने पिता द्वारा दी गई स्वर्णिम सीख सभी से साझा करी और बताया कि उनके पिता ने उन्हें सिखाया है कि किसी के भी बारे में बुरा ना सोचें, ना ही बुरा करें साथ ही किसी को भी कष्ट ना दें । अंत में उन्होंने यह कहकर अपनी बात को विराम दिया कि अधिवक्ता को अपने क्लाइंट को अपना रिश्तेदार ही समझ कर उसे विधिक उपचार देने चाहिए । इसके बाद क्लाइंट काउन्सलिंग के प्रारंभिक राउंड का आयोजन किया गया।

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