कोविड टीकाकरण: 18 अप्रैल से नौ मई के बीच जब देश महामारी की दूसरी लहर का संकट झेल रहा था, तब टीकाकरण सबसे निचले स्तर पर था। शायद यह भी एक वजह थी कि उस दौरान सप्ताह में औसतन 10 लाख की आबादी पर 28 से भी अधिक लोगों की मौत दर्ज की जा रही थी लेकिन इसके बाद सरकार को स्थिति संभालने में करीब एक महीने का वक्त लगा और फिर 16 मई के बाद से टीकाकरण बढ़ता चला गया, मौत कम होती चली गई।
12 अप्रैल से 15 अगस्त के बीच कोरोना से हुईं मौतों का जब गणितीय अध्ययन किया गया तो पता चला है कि 12 से 18 अप्रैल के बीच 10 लाख की आबादी पर टीका लेने वाले 19.2 लोगों की मौत हुई। जबकि पहली खुराक ले चुके 1.72 और दोनों खुराक ले चुके 0.46 लोगों की मौत दर्ज की गई। नौ मई के बाद जब 23 मई को दो सप्ताह की हमने समीक्षा की तो पाया कि वैक्सीन न लेने वालों में मौत 28.89 से कम होकर 22 तक पहुंची और वैक्सीन की दोनों खुराक लेने वालों की संख्या एक फीसदी से भी नीचे आ गई। यहीं से टीकाकरण का जमीनी पटल पर असर दिखाई देने लगा।
25 अप्रैल के सप्ताह में टीका न लगवाने वालाें में 22.52, दो मई के सप्ताह में 27.23 और नौ मई के सप्ताह में 28.89 यानी करीब 29 लोगों की मौत हुई। नौ मई के सप्ताह में पहली खुराक लेने वाले 10 लाख में से 1.87 की मौत हुई और दो खुराक ले चुके 1.1 लोगों की मौत हुई।
स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त निदेशक ने कहा, उन दिनों के हालात कभी यादों से खत्म नहीं हो सकते। चारों तरफ हंगामा और अफरा-तफरी के बीच नुकसान होता जा रहा था। मंत्रालय भी इसकी चपेट में आ चुका था लेकिन रात-दिन लड़ाई जारी रखने के बाद टीकाकरण को बढ़ाने पर ध्यान अधिक दिया।
एक दिन पहले केंद्र सरकार ने नेशनल वैक्सीन ट्रैकर सिस्टम लॉन्च करने की घोषणा करते हुए कहा था कि वैक्सीन की दोनों खुराक लेने के बाद 97 फीसदी से भी अधिक मृत्यु की आशंका को कम किया जा सकता है। इसी ट्रैकर की बदौलत सरकार को टीकाकरण का असर पता चला है। टीके की ताकत ऐसी है कि जैसे-जैसे टीकाकरण बढ़ता चला गया, कोरोना से लोगों की मौतें कम होती चली गईं।
