यूपी विधान परिषद: विधान परिषद में 13 सदस्यों का कार्यकाल बुधवार को पूरा हो गया। इनमें से सपा के छह, बसपा के तीन, भाजपा के दो और कांग्रेस के एक सदस्य थे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से विधायक निर्वाचित होने के बाद परिषद सदस्य के पद से पहले ही इस्तीफा दे चुके थे। यूपी विधान परिषद में अब नेता प्रतिपक्ष कोई नहीं होगा।
नेता प्रतिपक्ष के लिए प्रमुख विपक्षी दल के पास सदन की सदस्य संख्या (100) का न्यूनतम दस फीसदी (10) सदस्य होना आवश्यक है। परिषद में प्रमुख विपक्षी दल सपा के सिर्फ नौ सदस्य रहने से कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं होगा। वहीं विधान परिषद में कांग्रेस के एक मात्र सदस्य दीपक सिंह का कार्यकाल 6 जुलाई को समाप्त होने के साथ ही 87 साल बाद परिषद कांग्रेस मुक्त हो गई।
हालांकि परिषद के नवनिर्वाचित 13 सदस्यों का कार्यकाल 7 जुलाई से शुरू होगा। सपा के मात्र नौ और बसपा के मात्र एक सदस्य रहने से दोनों दल परिषद में अल्पसंख्यक हो गए हैं। 13 सीटों पर बीते महीने हुए चुनाव में भाजपा के नौ और सपा के चार सदस्य निर्विरोध निर्वाचित हुए थे। बृहस्पतिवार से सदन में भाजपा के सदस्यों की संख्या 73 हो जाएगी। भाजपा के राजनीतिक इतिहास में परिषद में पार्टी के सबसे अधिक सदस्य होंगे। वहीं सपा के राजनीतिक इतिहास में उच्च सदन में उसके सबसे कम 9 सदस्य रहेंगे।
वहीं बसपा के एक मात्र भीमराव आंबेडकर सदस्य बचे हैं, उनका कार्यकाल 5 मई 2024 तक है। जनसत्ता दल लोकतांत्रिक से अक्षय प्रताप सिंह, अपना दल के आशीष पटेल, शिक्षक दल (गैर राजनीतिक दल) से सुरेश कुमार त्रिपाठी एवं ध्रुव कुमार त्रिपाठी, निर्दलीय समूह से राज बहादुर सिंह चंदेल व डॉ. आकाश अग्रवाल हैं। तो विक्रांत सिंह और अन्नपूर्णा सिंह स्थानीय निकाय क्षेत्र से निर्दलीय सदस्य हैं।
