नई दिल्ली. शीर्ष कोर्ट ने कहा कि तुच्छ मामले उसे ‘निष्क्रिय’ बना रहे हैं। शीर्ष अदालत ने कहा है कि इन फालतू की याचिकाओं के कारण गंभीर मामलों को सुनवाई के लिए समय नहीं मिल पा रहा है।
न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने यह टिप्पणी एक उपभोक्ता विवाद मामले की सुनवाई के दौरान की। दरअसल, इस मसले का मार्च में ही अदालत ने निपटारा कर दिया था, लेकिन उसी मामले में फिर से एक नया आवेदन दायर किया गया था। मंगलवार को जैसे ही यह मामला सुनवाई के लिए आया तो जस्टिस चंद्रचूड़ ने पाया कि याचिकाकर्ता, जो चाहता था उस संदर्भ में अंतिम आदेश पहले ही पारित किया जा चुका था, लेकिन याचिकाकर्ता ने एक नगण्य मुद्दे के साथ वापस आने का फैसला किया।
जस्टिस चंद्रचूड ने याचिकाकर्ता से कहा, ‘अब आप यहां सिर्फ इसलिए आए हैं कि आपको आवंटित किए गए घर के लिए शेष रकम जमा करने से पहले आप कुछ दस्तावेजों की जांच करना चाहते हैं। आखिर यह क्या है? इस तरह से सुप्रीम कोर्ट को निष्क्रिय बनाया जा रहा है।’
जस्टिस चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि शीर्ष अदालत के न्यायाधीश महत्वहीन मामलों की बाढ़ के कारण गंभीर मामलों पर पर्याप्त समय नहीं दे पाते हैं। जस्टिस चंद्रचूड ने कहा, ‘कल मुझे कोविड-19 प्रबंधन स्वत: संज्ञान मामले में एक आदेश को अंतिम रूप देना था, लेकिन मैं वह नहीं कर सका। इसकी वजह यह थी कि आज सूचीबद्ध मामलों की फाइलें पढ़नी थीं। और अफसोस की बात है कि इनमें से 90 फीसदी मामले फालतू थे।’
उन्होंने यह भी कहा कि हमें एक संस्था के रूप में अपना समय फालतू के मामलों से निपटने में नहीं लगाना चाहिए। इससे न्यायालय का समय बर्बाद होता है और ऐसा समझा जाता है कि हमारे पास काफी समय है। जस्टिस चंद्रचूड ने इस बात पर जोर दिया कि गंभीर मामलों को समय दिया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट के मुताबिक, एक मई तक शीर्ष अदालत में 67898 लंबित मामले थे। इनमें से करीब 49 हजार नए मामले हैं जिन पर अभी तक इस पर विचार किया जा रहा है कि इन्हें सूचीबद्ध किया जाए या नहीं?