बीएल संतोष तीन दिन के यूपी दौरे के बाद बुधवार को दिल्ली लौट गए। इस दौरे में उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर संगठन और सरकार के कई प्रमुख लोगों से एक साथ तथा अलग-अलग बातचीत की। कुछ मंत्रियों की सुनी और उनकी क्षमता व योजना दृष्टि की थाह नापी। बैठकों में कोरोना में ऑक्सीजन व बेड की कमी और इस कारण बड़ी संख्या में हुई मौतों को लेकर गैरों के साथ अपनों (भाजपा के लोगों) की मुखर हुई नाराजगी की नब्ज टटोली गई।
संतोष ने सरकार के प्रबंधन व तैयारियों के दावों की सच्चाई समझी, पंचायत चुनाव के भाजपा के पक्ष में अपेक्षित नतीजे न आने की वजहें जानने की कोशिश की। सरकार व संगठन की नब्ज पर हाथ रखकर बीमारियां समझीं और लौट गए। अब दिल्ली में ऑपरेशन यूपी 2022 का ब्लू प्रिंट तैयार होगा। इसमें पूरा जोर कोरोना महामारी से हुए नुकसान की भरपाई पर रहेगा।
इसके तहत मंत्रिमंडल में कुछ बदलाव के साथ विस्तार व अधिकारियों की चुनाव तक नए सिरे से तैनाती हो सकती है। इस ब्लू प्रिंट का प्रभाव प्रदेश में बदलाव के रूप में तो सामने जरूर आएगा, लेकिन इसके संगठन और सरकार के कुछ मंत्रियों की भूमिका बदलने तथा नौकरशाही के कुछ प्रमुख चेहरों की काट-छांट तक ही सीमित रहने के आसार है। इसका मुख्य आधार ‘पॉलिटिक्स ऑफ परफॉरमेंस’ व डैमेज कंट्रोल ही होगा। वहीं फिलहाल मुखिया परिवर्तन का संकेत कहीं नहीं है।
प्रदेश की नौकरशाही को लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं, सांसदों व विधायकों की शिकवा-शिकायतें शुरू से ही मुखर होती रही हैं। पर, कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भाजपा के ही लोगों का व्यवस्था को लेकर सार्वजनिक रूप से सवाल खड़े करना और उसी बीच पंचायत चुनाव के नतीजे भाजपा की उम्मीदों के अनुसार न आना, संघ से लेकर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व तक की चिंता को बढ़ा दिया है।
भले ही संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले और भाजपा के बीएल संतोष के प्रदेश दौरे व लखनऊ प्रवास पूर्व निर्धारित थे, लेकिन दोनों ने अपने दौरे का एजेंडा बदलकर जिस तरह 2022 की चुनावी चुनौतियों के समाधान पर केंद्रित कर दिया उससे इस चिंता को समझा जा सकता है।
संतोष ने पंचायत चुनाव से हुए नुकसान की भरपाई के लिए ज्यादा से ज्यादा जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर भाजपा के लोगों को बैठाने का एजेंडा सौंपा। जिताऊ को उम्मीदवार बनाने का फॉर्मूला समझाया।
बीमारी समझने की कोशिश, मर्यादा में रहने का संदेश भी
लगभग दो दशक बाद पूर्ण बहुमत पाकर और वह भी 1991 से ज्यादा विधायकों के साथ प्रदेश की सत्ता में आई भाजपा का शीर्ष नेतृत्व तथा संघ किसी भी स्थिति में प्रदेश को खोना नहीं चाहता है। उसे पता है कि यूपी हारने का मतलब क्या होता है? संतोष के दौरे के एजेंडे से भी इसे समझा सकता है।
संतोष ने पहला दिन कोरोना महामारी के चलते संगठन व सरकार की छवि को पहुंचे नुकसान को समझने और उसकी भरपाई के उपाय पर लगाया। इसके लिए उन्होंने पार्टी के लोगों को सेवा के साथ सियासी जमीन मजबूत बनाने की तरकीब बताई।
वहीं, दूसरे दिन उन्होंने सरकार के कामकाज की शिकायतों की वजहें समझीं। कुछ मंत्रियों से एकांत में वार्ता की। इसमें उन्होंने 2022 की चुनौतियों व उनके समाधान की तैयारी के बारे में सवाल पूछकर यह समझने की कोशिश की कि उनके सामने बैठे मंत्री की चिंता सिर्फ खुद तक सीमित है या संगठन की साख की भी फिक्र है। तीसरे दिन उनका फोकस प्रचार में सरकार व संगठन के समन्वय के साथ सभी को मर्यादा में रहने का संदेश देने का रहा।