Uttar Pradesh

वाराणसी: पूर्वांचल के 13 उत्पादों को मिल चुका है जीआई टैग, बनारसी शहनाई व धातु शिल्प को भी जल्द मिलेगा जीआई टैग

वाराणसी: वाराणसी प्राचीन काल से बेहतरीन हस्तशिल्पों के लिए एक प्रमुख केन्द्र के रूप में विख्यात है। ब्रासवेयर, कॉपरवेयर, हाथीदांत का काम, कांच की चूड़िया, लकड़ी, पत्थर और मिट्टी के खिलौने और अति सुंदर स्वर्ण आभूषण तथा विभिन्न शिल्पों के लिए वाराणसी शहर प्रसिद्ध हैं। अब बनारसी साड़ी, लकड़ी के खिलौने और गुलाबी मीनाकारी के बाद अब बनारसी शहनाई व धातु शिल्प को भी जल्द जीआई टैग मिलेगा। दस्तावेजीकरण का काम पूरा करके आवेदन चेन्नई भेज दिया गया।

बनारसी तबले को भी जीआई में शामिल करने की प्रक्रिया चल रही है। तीन माह पूर्व जीआई पंजीकरण का काम पूरा हो चुका है। प्रधानमंत्री आगमन से पहले जीआई टैग की प्रक्रिया पूरी करने के लिए चेन्नई भेजे गए आवेदन का दस्तावेजीकरण का कार्य पूरा हो चुका है। पद्मश्री व जीआई विशेषज्ञ डॉ. रजनीकांत के अनुसार, जल्द ही दोनों जीआई उत्पाद में शामिल हो जाएंगे।

वाराणसी सहित पूर्वांचल के कुल 13 उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है। बनारसी साड़ी, भदोही का कालीन, मिर्जापुर और गाजीपुर का वॉल हैंगिंग, काला नमक चावल, मेटल क्राफ्ट, चुनार बलुआ पत्थर, गुलाबी मीनाकारी, स्टोन शिल्प, ग्लास बीड्स, निजामाबाद आजमगढ़ की ब्लैक पॉटरी और प्रयागराज का अमरूद इसमें शामिल हैं।

डॉ. रजनीकांत ने बताया कि काशी के ढलाई धातु शिल्प का इतिहास बहुत प्राचीन है। प्राचीन काल के सिक्कों से लेकर धातु की छोटी मूर्तियां, पूजा के पात्र, गंगाजली लोटा, कमंडल, सिंहासन, धातु की डलिया सहित बनारसी घंटे और घंटियां काफी प्रसिद्ध हैं। इन उत्पादों को आज भी कसेरा व विश्वकर्मा समुदाय के लोग परंपरागत रूप से हाथ से तैयार कर विदेशों तक भेजते हैं।

बनारसी शहनाई के लिए आवेदन भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्ला खां फाउंडेशन और बनारस धातु शिल्प ढलाई क्राफ्ट के लिए काशी क्षेत्र मेटल क्राफ्ट प्रोड्यूसर कंपनी की पहल पर नाबार्ड लखनऊ के सहयोग से ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन के फैसिलिटेशन की ओर से किया गया है।

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