सन्दीप मिश्रा
लखनऊ । आज प्रदेश की 476 ब्लाक के ब्लाक प्रमुख के चुनाव को लेकर हो रहे मतदान में पुनः हिंसा की खबरें गंभीर चिंता का विषय है, नामांकन के दौरान प्रदेश के 52 से अधिक जनपदों में हुई हिंसा के बाद मतदान के दौरान तमाम जनपदों में सत्तापक्ष के उम्मीदवारों के समर्थन में गुंडागर्दी और प्रशासन की मिली भगत लोकतंत्र और संविधान की मूलभावना पर गहरा आघात है। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की व्यवस्था सत्ता के विकेन्द्रीकरण के द्वारा आम जनता को ताकतवर बनाना था, किन्तु विग्त लगभग 25 वर्षो में सत्ता के दुरूपयोग के द्वारा जिला पंचायत सदस्य एवं बीडीसी सदस्यों के संवैधानिक अधिकारों का हनन करते हुए जबरन उनके मताधिकार को लूटा जा रहा है।
ब्लाक प्रमुख के नामांकन के दौरान हुई व्यापक हिंसा, नामांकन पत्रों की खरीद में बाधा एवं छीना-झपटी, अपहरण, गोलीबारी की घटनाएं लगभग पूरे प्रदेश में हुई थी। किन्तु प्रशासन ने फिर सत्ता के इशारे पर घटनाओं को रोकने की गंभीर कोशिश नही की, जिसके दुखद परिणाम स्वरूप अमरोहा, हमीरपुर, सिद्वार्थनर, अयोध्या आदि जनपदों में हिंसक झड़पे हुई। मीडिया के माध्यम से प्राप्त उन्नाव की घटना जिसमें टीवी पत्रकार श्रीकृष्णा तिवारी द्वारा ब्लाक प्रमुख चुनाव की धांधली की कवरेज के द्वारा जिले के सीडीओ द्वारा स्थानीय नेता के साथ मिलकर पत्रकार की पिटाई बेहद गंभीर विषय है। उन्नाव की यह घटना प्रशासन की संलिप्तता उजागर करती है। ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों पर तत्काल कार्यवाही सुनिश्चित की जानी चाहिए। अलीगढ़ में बीजेपी नेताओं ने प्रशासन से भिड़कर चुनाव में धांधली करने का प्रयास किया। इसी तरीके की तमाम घटनाएं पूरे प्रदेश में हुई है जिसमें गाली और बम के हमलों से चुनाव को रक्त रंजित किया जा रहा है। इटावा में पुलिस खुद हिंसा का शिकार हो गई किन्तु अराजक तत्वों पर कार्यवाही करने की हिम्मत नही जुटा पाई। क्योकि इस हिंसा में सत्तारूढ़ दल के विधायक समर्थक शामिल थे।
उत्तर प्रदेश की यह घटनाएं प्रदेश को शर्मशार करती है।
प्रदेश में लगभग 9 मंत्रियों एवं 50 से अधिक सत्ता पक्ष के विधायकों के परिवारीजन अथवा रिश्तेदार ब्लाक प्रमुख का चुनाव लड़ रहे है। इन सीटों पर सत्ता का खुलेआम दुरूपयोग हुआ है। तीन सौ से ज्यादा ब्लाक प्रमुखों को र्निविरोध निर्वाचित करवाना ऐसी ही अराजक तानाशाही का परिणाम है।
इस चुनाव में हुई हिंसक घटनाएं महिलाओं का अपमान, अपहरण आदि घटनाएं बेहद गंभीर एवं चिंता का विषय है। इतने बड़े पैमाने पर हिंसा की घटनाएं बगैर प्रशासन की मिलीभगत और सत्ता के संरक्षण के बिना संभव नहीं है। लखीमपुर में महिला के अपमान की घटना के बाद चंद छोटे पुलिस के अधिकारियों पर कार्यवाही करके सरकार अपने दामन को साफ करना चाहती है किन्तु पूरे प्रदेश में हुई व्यापक हिंसा पर अगर मुख्यमंत्री जी गंभीर है तो तत्काल पुलिस के प्रदेश स्तरीय बड़े अधिकारियों पर कार्यवाही करें। इस संपूर्ण घटनाक्रम पर चुनाव आयोग का मौन, उसकी निष्पक्षता एवं स्वायतता पर बड़े प्रश्न चिन्ह खड़ी करती है। चुनाव आयोग को अपनी निष्पक्षता अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए ब्लाक प्रमुख के चुनाव को निरस्त कर दुबारा चुनाव कराये जाने चाहिए। शासन प्रशासन के संदिग्घ अधिकारियों की जांच कराकर सख्त कार्यवाही सुनिश्चित कराई जानी चाहिए।