तालिबान का खौफ: तालिबान के मुताबिक इस्लाम में गीत-संगीत और हास्य-व्यंग्य हराम है। ऐसे में तालिबान के साये में अफगानिस्तान में शास्त्रीय संगीत के सुर बहेंगे या नहीं इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती। तालिबान अफगानिस्तान में कट्टरपंथी इस्लामी शासन की स्थापना की तरफ बढ़ रहा है। ऐसे में उनक भविष्य क्या होगा जो कभी शास्त्रीय संगीत को जीवन का ध्येय मान रहे थे और इसकी साधना में लगे थे।
बीते दिनों मशहूर अफगान कॉमेडियन नजर मोहम्मद को तालिबानी आतंकीयों ने मौत के घाट उतार दिया। इन्हीं हालात को देखते हुए कभी अफगानिस्तान में सितार और सरोद सिखाने वाले भारतीय शास्त्रीय संगीतकार दंपती पं. अभिषेक अधिकारी व डॉ. मूर्छना अधिकारी बड़ठाकुर अपने छात्रों के जीवन को लेकर चिंतित हैं।
पं. अभिषेक कहते हैं, हमारे छात्र संगीत सुनने और अभ्यास से डरते हैं, क्योंकि तालिबान संगीत के खिलाफ है। कुछ छात्र एक जगह जमा होकर दरवाजे खिड़कियां बंदकर भारतीय शास्त्रीय संगीत सुनते हैं, ताकि कोई और न देख पाए। पं. अभिषेक ने बताया कि संगीत संस्थान के निदेशक ने उन्हें बताया कि संगीत के सभी शिक्षक और छात्र अफगानिस्तान से निकलना चाहते हैं, लेकिन तालिबान ने उनके देश छोड़ने पर पाबंदी लगा दी है। अधिकारी ने बताया कि संस्थान के 350 छात्र शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ले रहे थे।
अधिकारी दंपती ने बताया कि 2012 से 2019 अक्टूबर तक वे इंस्टीट्यूट ऑफ इंस्ट्रूमेंटल म्यूजिक व अफगानिस्तान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ म्यूजिक से जुड़े थे। वे बताते हैं कि वहां बहुत प्यार और सम्मान मिला। छात्र उन्हें उस्ताद अभिषेक और उस्ताद मूर्छना कहते थे। 2019 के बाद कोविड के चलते उन्होंने काबुल में संगीत सीखने के इच्छुक छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं शुरू कीं, लेकिन तालिबान के कब्जे के बाद से सब कुछ बंद हो गया है।
