पौराणिक शास्त्रों में भाद्रपद अमावस्या के दिन धार्मिक कार्यों के निमित्त कुशा या घास इकट्ठी करने की मान्यता है। इसे भाद्रपद अमावस्या को पिठौरा, कुशोत्पाटनी, कुशग्रहणी अमावस्या, पोला पर्व आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन सुहागिनें संतान प्राप्ति एवं अपनी संतान के अच्छे जीवन की कामना से व्रत-उपवास रखकर भगवान भोलेनाथ और देवी दुर्गा का पूजन करती है। इस दिन देवताओं को जो भोग लगाया जाता है, उनमें पूजा के लिए विशेष तौर पर गुड़ के पारे, गुजिया, शकरपारे, मठरी, पूरन पोली, खीर आदि पकवान बनाकर देवी-देवताओं को उनका भोग लगाया जाता है।
