ममता बनर्जी का दिल्ली दौरा इस लिहाज से बेहद कामयाब माना जा सकता है कि एक तरफ उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री पश्चिम बंगाल के मुद्दों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से मुलाकात करके अपने सरकारी दायित्व का निर्वाह किया। साथ ही, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी, कमलनाथ, आनंद शर्मा, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत कई विपक्षी नेताओं से मुलाकात करके देश की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है।
उन्होंने बार-बार यह बात दोहराई कि वह खुद को नरेंद्र मोदी के मुकाबले संयुक्त विपक्ष के नेता के रूप में पेश नहीं कर रही हैं, बल्कि वह एक सामान्य राजनीतिक कार्यकर्ता की भूमिका में पूरे विपक्ष को सरकार के खिलाफ लड़ाई के लिए एकजुट करना चाहती हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों में नेता के सवाल पर उन्होंने साफ किया कि इसका फैसला सारे राजनीतिक दल उचित समय पर करेंगे और यह भी मुमकिन है कि चुनाव के बाद इसका फैसला हो। उन्होंने यह भी कहा कि वह भाजपा विरोधी सभी दलों के नेताओं से तो मिल ही रही हैं, साथ ही वह गैर-भाजपा दलों के उन नेताओं और मुख्यमंत्रियों से भी मिलेंगी जो तटस्थ हैं और समय-समय पर संसद में भाजपा की मदद भी करते हैं।
दरअसल ममता बनर्जी बेहद सधे कदमों से अपने कदम राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ा रही हैं। भले ही प्रशांत किशोर बतौर राजनीतिक रणनीतिकार अधिकारिक रूप से तृणमूल कांग्रेस के लिए काम अब नहीं कर रहे हैं, लेकिन जिस तरह से ममता बनर्जी में बदलाव आया है। कभी बात-बात पर नाराज होने वाली तुनक मिजाज ममता इस बार बहुत संतुलित और सहज नजर आईं। बांग्ला अखबारों के पत्रकारों के बांग्ला में पूछे गए सवालों का भी जवाब ममता बनर्जी ने हिंदी में दिया। मीडिया से मुलाकात के बाद सामूहिक रूप से राष्ट्रगान का गायन और जय हिंद व वंदे मातरम का उद्घोष भाजपा से राष्ट्रवाद की ठेकेदारी लेने का भी प्रयास माना जा सकता है। भले ही कांग्रेसी प्रियंका गांधी में इंदिरा गांधी की छवि देखते हों लेकिन ममता बनर्जी की कार्यशैली में साफ झलकता है कि उन पर इंदिरा गांधी का प्रभाव है।
ममता के करीबी सूत्रों का कहना है कि दीदी फिलहाल विपक्ष के सभी नेताओं से मिलकर उनके साथ अपने सीधे निजी रिश्ते बना रही हैं। वह भाजपा विरोधी दलों के बीच आपसी झगड़े में न पड़कर सबके बीच अपनी स्वीकार्यता बना रही हैं। इसीलिए वह कांग्रेस नेताओं से भी मिलती हैं तो अरविंद केजरीवाल से भी मुलाकात करती हैं। भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनावों में वह उन राज्यों में प्रचार के लिए जाएंगी जहां भाजपा के मुकाबले सबसे मजबूत विपक्षी दल उन्हें बुलायेगा। जैसे एक सवाल के जवाब में ममता बनर्जी ने कहा कि अगर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी उन्हें चुनाव प्रचार के लिए बुलाती है तो वह जरूर जाएंगी।
लेकिन जहां दो गैर-भाजपा दलों के बीच लड़ाई होगी वहां चुनाव प्रचार में जाने से परहेज कर सकती हैं, जैसे पंजाब और उत्तराखंड जहां कांग्रेस के मुकाबले में आम आदमी पार्टी भी खम ठोक रही है। अपनी रणनीति के अगले दौर में ममता बनर्जी देश के विभिन्न राज्यों में सामाजिक, आर्थिक, बौद्धिक संगठनों के कार्यक्रमों, छात्रों, युवाओं और महिलाओं के गैर-राजनीतिक कार्यक्रमों में शिरकत कर सकती हैं और लोगों से सीधे संवाद करके जनता के बीच अपनी स्वीकार्यता बनाने की कोशिश करेंगी। इस दौरान जितने भी विधानसभा चुनाव होंगे उनमें जहां भी भाजपा के सीधे मुकाबले में जो भी गैर-भाजपाई दल होगा, उसके लिए चुनाव प्रचार कर सकती हैं।
तृणमूल के एक पूर्व सांसद के मुताबिक दीदी धीरे-धीरे सभी विपक्षी दलों के बीच एक ऐसी कड़ी बनेंगी, जो 2024 के लिए विपक्षी दलों को उसी तरह एकजुट करेंगी जैसे कभी हरियाणा का चुनाव जीतने के बाद चौधरी देवीलाल और बुजुर्ग माकपा नेता हरिकिशन सिंह सुरजीत ने किया था। लेकिन इस कवायद के दौरान भी ममता बनर्जी खुद को नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रधानमंत्री पद का चेहरा तब तक घोषित नहीं करेंगी जब तक कि उन पर सबकी सहमति न बन जाए और अगर चुनाव तक सहमति नहीं बनती है तो वह चुनाव के बाद इस दौड़ में खुद को आगे करेंगी।