कोरोना काल में भारत ने ऑनलाइन शिक्षा का प्रकरण तेजी से अपनाया, इस बीच छात्रों को काफी समस्याओं का सामना भी करना पड़ रहा है। अगर हम ऑनलाइन शिक्षा में आ रही समस्याओं की बात करें तो शहर के बच्चों के लिए तो ये सुविधाजनक है, परंतु गांव के बच्चों के पास संसाधन की कमी होने के कारण उनकी पढ़ाई लगभग ना के बराबर हुई है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि गरीब वर्ग के बच्चे जो मोबाइल जैसी चीजों को नहीं खरीद सकते वो अपनी पढ़ाई कैसे पूरी करें। चूकिं सरकार कि नीतियां भी जरूरतमदों तक पहुंचने में कामयाब नहीं रही है।

परीक्षा के बाद परिणाम की घड़ी एक छात्र के लिए सबसे महत्वपूर्ण होती है। पर 2020 से लेकर अभी तक छात्रों के जीवन में ऐसा समय बहुत कम आया है, क्योंकि उन्हें बिना परीक्षा के ही पास किया गया है। सही मायने में बात करें तो देश के एक चौथाई बच्चों से भी कम छात्रों ने परीक्षा दी है। क्योंकि महामारी इस तरह से फैली हुई थी कि घर से बाहर निकलना गुनाह माना जा रहा था। और छात्रों द्वारा भी परीक्षा ना लेने का विरोध हमें देखने को मिला जिसमें अभिभावकों की भी रजामंदी शामिल थी।

ऑनलाइन शिक्षा से सिर्फ नुकसान ही नहीं है अगर कोविड-19 आने के बाद देश ने मॉडर्नाइजेशन को किस तरह से अपनाया है। चिंताजनक परिस्थिति होने के बाद भी देश में पढ़ाई का स्तर रुका नहीं। हां, हमें कुछ परेशानी का सामना जरूर करना पड़ा पर इस दौरान भारत ने वो कर दिखाया जो 2030 तक भी मुमकिन नहीं था। प्रधानमंत्री के डिजिटल इंडिया का प्लान यहां कुछ हद तक पूरा होते भी देखा गया।

 

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