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वाराणसी: पर्यावरण का प्रदूषण कम करने के लिए मोक्ष की नगरी काशी में गोरक्षनगरी की तर्ज पर अंतिम संस्कार की प्रक्रिया होगी शुरू

वाराणसी: पर्यावरण का प्रदूषण कम करने के लिए काशी में मोक्ष के लिए गोरक्षनगरी गोरखपुर की तकनीक का इस्तेमाल होगा। मोक्ष की नगरी काशी में गोरक्षनगरी की तर्ज पर अंतिम संस्कार की प्रक्रिया शुरू होगी। मोक्ष द्वार मणिकर्णिका घाट पर लकड़ी आधारित दो शवदाह गृह बनाए जाएंगे। इसके लिए घाट पर जगह तय हो गई है। मणिकर्णिका घाट पर महाश्मशान नाथ मंदिर के पास सीढ़ी से उतरते ही लकड़ी आधारित दोनों शवदाह गृह बनाए जाएंगे। इस पर करीब एक करोड़ की लागत आएगी।

शिव की नगरी में गोरक्षनगरी की तरह ही लकड़ी आधारित शवदाह गृह बनाए जाएंगे। इससे जहां पर्यावरण का प्रदूषण कम करने में मदद मिलेगी वहीं ऊर्जा का संरक्षण व शवदाह के लिए आने वाले यात्रियों के समय की भी बचत होगी। मणिकर्णिका घाट पर इसका स्थान तय हो गया है। एक करोड़ की लागत से बनने वाले शवदाह गृह के निर्माण के लिए कोलकाता की संस्था हिंदुस्तान चैरिटी ने पहल की है।

नगर निगम के अधिशासी अभियंता अजय कुमार राम ने गोरखपुर के शवदाह गृह ऊर्जा गैसी फायर के मालिक से मुलाकात करके इसकी पूरी कार्ययोजना तैयार कर ली है। सप्ताह भर के अंदर इस पर काम भी शुरू हो जाएगा।

जहां सामान्य चिता के लिए ढाई क्विंटल लकड़ी की जरूरत होती है वहीं इस इको फ्रेंडली शवदाह गृह में अंतिम संस्कार के लिए एक क्विंटल लकड़ी में काम हो जाएगा। शवदाह की प्रक्रिया डेढ़ घंटे में ही पूर्ण हो जाएगी जबकि सामान्यत: इस प्रक्रिया में तीन से चार घंटे का समय लग जाता है। लकड़ी की कमी, वायु प्रदूषण और गंगा में होने वाले प्रदूषण से निपटने में यह तकनीक कारगर सिद्ध होगी।

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