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एलयू: साप्ताहिक संस्कृतमहोत्सव का आज तिसरा दिन, संस्कृत का साम्प्रतिक महत्त्व विषय पर हुआ व्याख्यान

लखनऊ विश्वविद्यालय में संस्कृतमहोत्सव का आयोजन 19 अगस्त 2021 से 25 अगस्त 2021 तक संस्कृतसप्ताह के अंतर्गत किया जा रहा है। इस समारोह के तृतीय दिवस में आज दिनांक 21 अगस्त 2021 को अपराह्ण 1 बजे से “संस्कृत का साम्प्रतिक महत्त्व” इस विषय पर प्रो० उमारानी त्रिपाठीजी के बहूपयोगी व्याख्यान का सफल आयोजन किया गया। कार्यक्रम का संचालन संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग के सहायकाचार्य डॉ० सत्यकेतु द्वारा किया गया। कार्यक्रम में समागत विद्वानों एवं श्रोताओं का वाचिक स्वागत विभाग के समन्वयक सहायकाचार्य डॉ० प्रयाग नारायण मिश्र द्वारा किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ संस्कृत विभाग की ही छात्रा मांडवी त्रिपाठी द्वारा सुमधुर सरस्वती वंदना से किया गया। तत्पश्चात् आज का कार्यक्रम चूंकि भौतिक तथा ऑनलाइन दोनों प्रकार से संचालित किया जा रहा था। अतः विद्या की अधिष्ठात्री देवी माता सरस्वती की प्रतिमा पर अभ्यागत मुख्य वक्ता विदुषी प्रो० उमारानी त्रिपाठी (पूर्व अधिष्ठाता कला संकाय एवं पूर्व विभागाध्यक्ष संस्कृत विभाग काशी विद्यापीठ वाराणसी) द्वारा तथा विभागीय प्राध्यापकों द्वारा भी माल्यार्पण किया गया। तदनंतर संस्कृत विभाग में पीडीएफ डॉ ० पत्रिका जैन द्वारा प्रो० उमारानी त्रिपाठीजी का माल्यार्पण तथा किट आदि उपायन प्रदान करके स्वागत किया गया। इस अवसर पर संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग के समन्वयक डॉ० प्रयाग नारायण मिश्र ने सभी संस्कृतानुरागी श्रोताओं और छात्रों को संस्कृत की उपादेयता बताते हुए अभ्यागतों का वाचिक स्वागत किया। कला संकाय काशी विद्यापीठ वाराणसी की पूर्व अधिष्ठाता प्रो० उमारानी त्रिपाठी ने आज के समसामयिक परिप्रेक्ष्य में संस्कृत की प्रासंगिकता को सबलतया से प्रतिपादित किया। उन्होंने छात्रों को संबोधित करते हुए जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में संस्कृत के शास्त्रों की उपयोगिता को स्पष्ट किया। आज कोरोना जैसे विषाणु से प्रताड़ित मनुष्य के जीवन को कैसे आयुर्वेदादि शास्त्र पुनर्नवीकृत करने में सक्षम हुए हैं इसका भी सोदाहरण प्रतिपादन किया। उन्होंने कहा कि दुनियां भर के ज्ञान विज्ञान से भौतिक सुख आराम तो प्राप्त किए जा सकते हैं किन्तु वास्तविक मानसिक शान्ति का मार्ग संस्कृत के शास्त्रों में ही प्राप्त होता है। मनुष्य का चारित्रिक नैतिक उत्थान संस्कृत के अध्ययन से संभव है। संस्कृत की वर्णमाला की एक-एक वर्ण ध्वनि के उच्चारण का स्वरूप ऐसा वैज्ञानिक है जिससे मस्तिष्क तक कम्पन होने से बोलने वाले अभूत पूर्व लाभ प्राप्त होते हैं। आधुनिक विज्ञान इस पर निरन्तर शोध कार्य कर रहा है। प्रो०त्रिपाठी के उद्बोधन के उपरान्त डॉ० अभिमन्यु सिंह के द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ आज के सत्र का समापन हुआ।

लखनऊ विश्वविद्यालय के यशस्वी कुलपति प्रो.आलोककुमार राय के संरक्षण तथा संस्कृतविभाग की पदेन अध्यक्ष प्रो.प्रेमसुमनशर्मा.अधिष्ठाता कलासंकाय के निर्देशन मे डॉ० प्रयागनारायणमिश्र .समन्वयक,संस्कृत विभाग ने इस कार्यक्रम का सफल आयोजन किया।
कार्यक्रम में डॉ० भुवनेश्वरी भारद्वाज, डॉ०अशोककुमारशतपपथी, डॉ० गौरवसिंह, डॉ० ब्रजेश सोनकर तथा डॉ० ऋचापांडेय आदि विभागीय प्राध्यापकों सहित पचास से अधिक छात्र छात्राओं ने भाग लिया। आज का कार्यक्रम संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग में ऑफलाइन तथा ऑनलाइन माध्यम से गूगल मीट के प्लेटफार्म पर आयोजित किया गया। आगे के कार्यक्रमों का आयोजन ऑनलाइन तथा ऑफलाइन दोनों माध्यमों से सप्ताहपर्यन्त किया जाएगा जिसमें लब्धप्रतिष्ठ विद्वानों के व्याख्यान..वादविवाद,सम्भाषण परिचर्चा सत्र तथा संस्कृत गीत गायन आदि अनेक कार्यक्रम आयोजित करके संस्कृत की महत्ता तथा प्रासंगिकता के साथ संस्कृतवाङ्मय मे निहित ज्ञानविज्ञान के मौलिक सिद्धान्तों से समाज को परिचित कराके भारतवर्ष के गौरव का संकीर्तन किया जायगा।

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