बाबा रामदेव (Baba Ramdev) बनाम इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के बीच की लड़ाई आयुर्वेद (Ayurveda) बनाम ऐलोपैथी (Allopathy) की बहस में बदल गई. इसमें न केवल देशभर के ऐलोपैथिक डॉक्टर बल्कि तमाम आयुर्वेद के संस्थान और आयुर्वेद के विशेषज्ञ भी शामिल हो गए.
सोशल मीडिया (Social Media) से लेकर आम लोगों के बीच में पहुंची इस लड़ाई को लेकर आयुष मंत्रालय-सीएसआईआर ज्वॉइंट मॉनिटरिंग कमेटी फॉर क्लिनिकल ट्रायल्स के चेयरमैन और आईसीएमआर (ICMR) के पूर्व डीजी डॉ. वीएम कटोच ने न्यूज 18 हिंदी से विस्तार से बातचीत की है. साथ ही इस तरह की बहसों को निराधार और खराब बताया है.
स्वास्थ्य मंत्रालय (Health Ministry) के पूर्व स्वास्थ्य सचिव डॉ. कटोच कहते हैं, ‘मैं सचिव रहा, उसके बाद अब आयुष (Ayush) और सीएसआईआर को लेकर बनीं कई कमेटियों को चेयर कर रहा हूं लेकिन मैंने अभी तक यही पाया है कि विज्ञान की कोई फिलोसोफी या धर्म नहीं है, विज्ञान सिर्फ विज्ञान है. इसे आप पुरानी और मॉडर्न साइंस (Modern Science) में नहीं बांट सकते जैसे कि आजकल ऐलोपैथी और आयुर्वेद को लेकर कहा जा रहा है. विज्ञान सिर्फ तथ्यों से चलता है.’
ये सब जो विवाद हो रहा है यह कुछ लोगों की तरफ से दी गई अतिवादी प्रतिक्रिया है. खुद को आयुर्वेद का समर्थक कहने वाले आयुर्वेद को लेकर प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं. वहीं ऐलोपैथी के समर्थक अपने पक्ष में बयानबाजी कर रहे हैं. देखा जाए तो इस तरह यह विज्ञान पर विचार-विमर्श नहीं हो रहा है. यहां विज्ञान और उसके शोधों पर बातें नहीं हो रही हैं बल्कि ये सिर्फ सब व्यक्तिगत रूप ये की जा रही बयानबाजी और समर्थन है. इस बहस का न तो आयुर्वेद से लेना देना है और न ही ऐलोपैथी से कोई मतलब है.
अगर वर्तमान परिस्थितियों में कोरोना को लेकर ही बात करें तो जो भी सिफारिशें आई हैं. चाहे वे आयुष मंत्रालय की तरफ से जारी की गई हैं, चाहे स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से की गई हैं, ज्यादातर संयुक्त रूप से जारी की गई हैं. यहां हो ये रहा है कि बहुत से लोग आयुर्वेद और ऐलोपैथी को लेकर छोटे स्तर पर बहस करके खुद को वैज्ञानिक घोषित कर रहे हैं और ये दोनों ही तरफ से चल रहा है.
किसी व्यक्ति की कोई बीमारी ठीक करने में विशेषज्ञता या अनुभव है तो किसी की अन्य किसी में. ये हुनर आयुर्वेद से लेकर होम्योपैथी या ऐलोपैथी किसी भी पैथी में हो सकता है लेकिन यहां हो ये रहा है कि लोग इन सबके आधार पर दावे करना शुरू कर देते हैं और जब वो इसे लेकर क्लेम करते हैं तो ये तय कि आलोचना होगी और सामने वाला भी प्रतिक्रिया देने लगेगा. यहीं से विवाद पैदा हो रहा है.
अभी तक की ये डिबेट मानवीय भावनाओं से पैदा हुई है इसमें कुछ भी वैज्ञानिक नहीं है. किसी को आंख बंद करके सही मान लेना और किसी को पूरा तरह नकार देना ये सही डिबेट नहीं है. ये नहीं होनी चाहिए.
डॉ. कटोच कहते हैं, ‘मेरा मानना है कि विज्ञान सबूत और डेटा पर आधारित होना चाहिए. कमेटियां बनाई गई हैं, उन्हें इनकी समीक्षा करनी चाहिए और फिर सिफारिशें देनी चाहिए. इससे ये होगा कि जो भी अनावश्यक और बेकार के विवाद और बहस हो रही हैं वे बंद हों.
मैं किसी भी ए के बी पर या बी के ए पर आरोपों का समर्थन नहीं करता. मेरा कहना ये है कि ये सब बातें गलत हैं. अगर आपके पास फैक्ट नहीं है तो मत बोलिए.