नया जरिया: कोरोना महामारी के बीच मानव तस्करी का तरीका भी बदल गया है। रास्ते से चमचमाती हुई लग्जरी बस गुजरते दिखे जिसमें काले शीशे, पर्दे लगे हों तो एक बार संदेह जरूर कर सकते हैं, क्योंकि ये बसें बच्चों की तस्करी का नया जरिया बन गई हैं।
बच्चों की तस्करी रोकने और उन्हें आजाद कराने के काम में लगी एनजीओ सेंटर डायरेक्ट के निदेशक सुरेश कुमार बताते हैं कि कोरोना के दौर में जब ट्रेनें रद्द रहीं तो तस्करों ने तस्करी के लिए लग्जरी बसों का सहारा ले लिया है। इस कारण एनजीओ और सरकार को भी बच्चों को आजाद करने के मिशन में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
सुरेश कुमार का कहना है कि प्राइवेट लग्जरी बसों का कोई समय नहीं है। दिन में ये बसें खड़ी रहती हैं। रात को इनमें बच्चों को भरा जाता है और बिना किसी डर भय के एक स्थान से दूसरे स्थान भेजा जा रहा है। कभी-कभी हम देखते भी हैं कि बस बच्चों से भरी है लेकिन तेज रफ्तार बस को रोकना नामुनकिन होता है। पहले ट्रेनों का समय पता था, स्टॉपेज पता था, हम बच्चों को देख के भी पता लगा लेते थे, लेकिन अब काले व पर्दे वाली बसों के जरिये हो रही बच्चों की तस्करी को रोकना मुश्किल हो गया है क्योंकि अब अंदाजा लगाना मुश्किल है।
सुरेश बताते हैं कि बिहार में पिछले साल से लेकर अब तक 75 बच्चों को बसों से रिहा कराया गया है। सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि अभिभावक ही बच्चे को छोड़ने जाते हैं, ऐसे में कुछ कार्रवाई करना भी मुश्किल होता है, लेकिन अब मामले बढ़ रहे हैं। हर दिन किसी न किसी तरह बच्चों की तस्करी हो रही है।
