लखनऊ विश्वविद्यालय ने 21 अक्टूबर, 2021 को ‘लैंगिक मानदंड-एक अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार परिप्रेक्ष्य’ पर एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया। वेबिनार में विभिन्न प्रसिद्ध वक्ताओं ने समलैंगिक अधिकार, महिलाओं के खिलाफ भेदभाव की रोकथाम, लिंग न्याय, लिंग संवेदनशीलता और महिलाओं के प्रजनन अधिकार जैसे मुद्दों पर बात की। इसमें प्रोफेसरों, वकीलों और कानून के छात्रों सहित 150 से अधिक प्रतिभागी थे।
इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री डेविड रिचर्ड्स थे जो न्यूयॉर्क से वेबिनार में शामिल हुए थे। श्री डेविड रिचर्ड्स न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ लॉ में संवैधानिक और आपराधिक कानून के प्रोफेसर हैं और 20 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं। उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्ययन किया और एच.एल.ए. हार्ट और जॉन रॉल्स जैसे प्रख्यात न्यायविद उनके शोध पर्यवेक्षक थे । उनके कार्यों को भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुरेश कुमार कौशल मामले में अपने निर्णय में संदर्भित किया गया था जिसमें आईपीसी की धारा 377 को असंवैधानिक माना गया था। श्री डेविड रिचर्ड्स ने वेबिनार में ‘संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका और भारत में समलैंगिक अधिकारों में विकास के स्रोत के रूप में तुलनात्मक संवैधानिक विधि के विकास’ पर अपना पेपर प्रस्तुत किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कैसे भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका समलैंगिक अधिकारों में अत्याधिक समानता है और भले ही संयुक्त राज्य अमेरिका एक पुराना लोकतंत्र है, लेकिन इसे दक्षिण अफ्रीका और भारत जैसे नए लोकतंत्रों में हो रहे विकास से बहुत कुछ सीखना है। उन्होंने भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दो निर्णयों सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति पी.एस. पुट्टस्वामी केस और सुरेश कुमार कौशल केस उधरित किया उन्होंने माननीय न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और माननीय न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा के निर्णयों का हवाला देते हुए फैसले के अंश उद्धृत किए।
डेविड रिचर्ड्स की प्रस्तुति के बाद भारतीय विधि संस्थान के निदेशक और मानवाधिकार और अंतर्राष्ट्रीय विधि की अर्थाटी माने जाने वाले प्रोफेसर (डॉ.) मनोज कुमार सिन्हा, ने महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर जोर दिया उन्होंने एक भारतीय महिला यानी सुश्री हंसा मेहता द्वारा निभाई गई भूमिका की प्रशंसा की । हंसा मेहता ने मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा का मसौदा तैयार किया और इसे ‘सभी पुरुष स्वतंत्र पैदा हुए’ से बदलकर ‘सभी मनुष्य स्वतंत्र पैदा हुए’, इस प्रकार इसे सभी लिंगों के समावेशी बना दिया। उन्होंने भेदभाव की परिभाषा और महिलाओं के खिलाफ हिंसा में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए भारत में व्यापक भेदभाव विरोधी कानून की आवश्यकता पर चर्चा की। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संघर्ष के क्षेत्रों में महिलाओं को वार्ताकार के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता सुश्री प्रिया हिंगोरानी ने न्याय वितरण प्रणाली में लिंग संवेदनशीलता पर बात की। उन्होंने लैंगिक संवेदनशीलता सुनिश्चित करने के लिए न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने पर बात की। लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ-साथ अन्य प्रतिभागियों के साथ अपने संवादात्मक सत्र में उन्होंने जनहित याचिका पर सभी लिंगों के न्याय वितरण को और अधिक समावेशी बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में जोर दिया। उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि इसमें शामिल होने वाले प्रतिभागियों की तरह युवा पीढ़ी कानूनी व्यवस्था में बदलाव लाएगी।
अगले वक्ता श्री पंच ऋषि देव शर्मा थे जो विधि संकाय, लखनऊ विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर हैं और वह विक्टोरिया विश्वविद्यालय, कनाडा से पीएचडी कर रहे है। जिनका कैम्ब्रिज लॉ, ब्रिक्स कानून समीक्षा जैसी पत्रिकाओं में एक प्रमुख योगदानकर्ता रहा है। उन्होंने लैंगिक न्याय को सिद्धांत के रूप में और भारत में इसके विकास पर बात की।
अंतिम वक्ता श्री सेतु गुप्ता, एक लेखक, शिक्षाविद, शोध विद्वान और भारत के पूर्व सलाहकार विधि आयोग थे। उनकी पुस्तक द लीगल एंड फिलॉसॉफिकल स्टडी ऑफ एबॉर्शन हाल ही में थॉमसन रॉयटर्स द्वारा प्रकाशित की गई थी। उन्होंने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय उपकरणों के तहत गारंटीकृत प्रजनन अधिकारों पर बात की और इस बात पर जोर दिया कि सूचना और साधन न केवल प्रजनन सेवाओं तक समान पहुंच, बेहतर यौन स्वास्थ्य बल्कि बच्चों की संख्या, अंतर और समय में सूचित निर्णय भी सुनिश्चित करेंगे।
ये अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार प्रो0 आलोक कुमार राय, कुलपति लखनऊ विश्वविद्यालय के मार्गदर्शन से प्रो0 सी0पी0 सिंह, संकायाध्यक्ष, विधि संकाय की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ कृति परासर शोध छात्र, विधि संकाय, लखनऊ विश्वविद्यालय इसकी संयोजिका थी। कार्यक्रम का संचालन लखनऊ विश्वविद्यालय के मूर्ट कोर्ट एसोशिएशन के छात्रों ने किया।
