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राजस्थान: अभी भी इस जिले में रहते हैं रावण के वंशज, रावण दहन नहीं देखते बल्कि उस दिन शोक मनाते हैं, मंदिर में करते हैं पूजा-पाठ

राजस्थान: देशभर में दशहरे पर रावण दहन की परंपरा है, लेकिन राजस्थान में एक जगह ऐसी है जहां लोग इसके अंत पर शोक मनाते हैं। जोधपुर में रावण का मंदिर बनाया गया है और वहां पूजा अर्चना की जाती है। यहां के श्रीमाली ब्राह्मण समाज खुद को रावण का वंशज मानता है और मंडोर को उनका ससुराल।

मंदिर के पुजारी बताते हैं कि दशहरे पर रावण दहन के बाद उनके समाज के लोग स्नान कर यज्ञोपवीत बदलते हैं मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। रावण भी शिव भक्त था, इसलिए शिव की भी विशेष आराधना होती है।

मान्यता है कि जब रावण विवाह करने जोधपुर के मंडोर आए थे तब यह ब्राह्मण उनके साथ बारात में आए थे। विवाह करके रावण वापस लंका चला गया, लेकिन यह लोग यहीं रह गए। तब गोधा गोत्र के श्रीमाली ब्राह्मण यहां रावण की विशेष पूजा करते आ रहे हैं। ये रावण का दहन नहीं देखते, बल्कि उस दिन शोक मनाते हैं। यहां तक कि श्राद्ध पक्ष में दशमी पर रावण का श्राद्ध, तर्पण आदि भी करते हैं।

अपनों के निधन के बाद जिस तरह स्नान कर यज्ञोपवीत बदला जाता है, उसी प्रकार रावण के वंशज दहन के बाद शोक के रूप में लोकाचार स्नान कर कपड़े बदलते हैं। जोधपुर में श्रीमाली ब्राह्मण में गोधा गोत्र के ब्राह्मण रावण के ही वंशज हैं, इसलिए वे रावण दहन नहीं देखते। जोधपुर में इस गौत्र के करीब 100 से ज्यादा और फलोदी में 60 से अधिक परिवार रहते हैं।

गोधा गोत्र के ब्राह्मणों ने जोधपुर के मेहरानगढ़ की तलहटी में रावण का मंदिर 2008 में बनवाया था। यहां रावण की शिव आराधना करते हुए विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है। रावण के मंदिर के सामने ही मंदोदरी का मंदिर भी बनवाया गया है।

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