राष्ट्रीय आर्थोडॉटिक दिवस: तेजी से बदल रही जीवनशैली के हिसाब से खानपान के साथ ही दांतों की सुरक्षा भी बहुत जरूरी है। ऐसा इसलिए कि अच्छी सेहत, सही पाचन में दांतों का बड़ी भूमिका है। वाराणसी में बीएचयू दंत चिकित्सा विज्ञान संकाय के पूर्व प्रमुख प्रो. टीपी चतुर्वेदी के निर्देशन में हुए एक सर्वे में यह रिपोर्ट सामने आई है कि करीब 49 प्रतिशत बच्चे टेढ़े मेढ़े दांत और जबड़े की समस्या से ग्रसित हैं।
इसमें अधिकांश बच्चों की उम्र दस साल से कम है। प्रो. चतुर्वेदी के अनुसार, ऐसे बच्चों के अभिभावकों को समय पर बच्चों के दांतों, जबड़े की जांच कराते रहना चाहिए, जिससे कि आगे चलकर उन्हें कोई परेशानी न हो। इसके प्रति जागरूकता के लिए ही हर साल पांच अक्तूबर को राष्ट्रीय आर्थोडॉटिक दिवस भी मनाया जाता है।
प्रो. चतुर्वेदी ने बताया कि आर्थोडॉटिंग डेंटिस्ट्री की सुपरस्पेशियलिटी है इसके तहत बीएचयू दंत चिकित्सा संकाय में टेढे़ मेढे़ अनियमित दांत, जबड़े और चेहरे को ठीक किया जाता है। उन्होंने बताया कि सात से 18 साल तक के उम्र के दौरान इसका इलाज करा लेना उचित समय होता है। ऐसा इसलिए कि इसमें छह महीने से तीन साल तक का समय लग जाता है। प्रो. चतुर्वेदी ने बताया कि संकाय में पहले से आर्थोडॉंटिटक एमडीएस में तीन सीट के बाद अब इस साल से चार सीटों पर प्रवेश लिया जाएगा। ऐसे में अधिक से अधिक छात्रों को इस बारे में जानकारी मिल सकती है।
बच्चों के टेढ़े मेढ़े दांत और जबड़े की समस्या का कारण मुख्य रूप से वातावरण और आनुवांशिकी होता है। साथ ही मुंह के सांस लेने, अंगुठा चूसने, कुपोषण, जीभ के बनावट व गलत ढंग से खाना निगलने से होता है। कटे तालू एवं कटे होठ के कारण भी यह समस्या होती है। इससे खाने में कठिनाई, देखने में मुंह व चेहरा खराब लगता है। जबड़े व चेहरे का विकास बच्चों में ठीक से नहीं हो पाता है।
