अजीब है पुलिस सिस्टम, जिस थानेदार की शिकायत पुलिस कार्यालय में की जाती है, फरियाद को फिर वापस उसी थानेदार के पास दिया जाता है भेज

 

सन्दीप मिश्रा

उत्तर प्रदेश । रायबरेली जनपद में थानों में फरियादियों की सुनवाई नहीं होती है और यदि होती भी है तो कहीं ना कहीं सांठगांठ का मामला सामने आ जाता है। यही कारण है कि दिन भर पुलिस अधीक्षक कार्यालय में फरियादियों की कतार लगी रहती है । आखिर थाने के कर्ता-धर्ता क्यों नहीं फरियादियों की शिकायत पर तत्काल मामला पंजीकृत कर देते हैं । क्योंकि शासनादेश है कि तहरीर मिलते ही मुकदमा पंजीकृत किया जाए और मामला सही है या गलत वह जांच का विषय बन जाता है और पुलिस अपनी जांच में मामले को सही या गलत साबित कर सकती है । लेकिन होता उसका उल्टा ही है। थाने में फरियादी अपनी शिकायत लेकर तो जाता है परंतु शिकायत दर्ज करने से पूर्व पुलिसकर्मी अपना मनमाना रवैया दिखाने लगते हैं। यही कारण है कि या तो फरियादी थक हार कर घर में बैठ जाता है या फिर पुलिस अधीक्षक कार्यालय पर जाकर अपनी गुहार लगाता है। यहां तक तो एक बात समझ में आती है कि यदि नीचे के अधिकारी नहीं सुन रहे हैं तो फरियादी उच्च अधिकारियों से शिकायत दर्ज करवा सकता है । परंतु पेच भी यही फस जाता है। क्योंकि पुलिस अधीक्षक कार्यालय में दिए गए तमाम प्रार्थना पत्रों में यह साफ-साफ लिखा रहता है कि थाने की पुलिस ने उसके साथ अभद्रता की या उसकी रिपोर्ट नहीं लिखी और किसी किसी प्रार्थना पत्रों में तो यह तक कहा जाता है कि थाने से उसे भगा दिया गया। अब आप खुद अंदाजा लगाइए कि फरियादी जिस थानेदार की शिकायत करने व पुलिस अधीक्षक कार्यालय में न्याय की गुहार लगाने जाता है । वहां से उसे वापस फिर उसी थाने और थानेदार के पास भेज दिया जाता है । इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस फरियादी की वापस थाने पर पहुंचने पर किस तरह की खातिरदारी की जाती होगी । कानून के जानकार बताते हैं कि पुलिस थाने में मुकदमा पंजीकृत करने में इसलिए कतराती है क्योंकि जितने ज्यादा मुकदमा पंजीकृत किए जाएंगे उस थाने में अपराध का ग्राफ उतना ही ऊपर दिखाई देगा । अपने उच्चाधिकारियों को खुश रखने के लिए थानेदार रिपोर्ट लिखने में दुनिया भर के नियम कानून बताते हैं । जबकि तहरीर मिलने पर मुकदमा पंजीकृत करना इनकी पहली प्राथमिकता होती है । जिसे पुलिसकर्मी भूल सा जाते हैं । यही कारण है कि पुलिस अधीक्षक कार्यालय ही नहीं बल्कि माननीय न्यायालय में भी लगातार धारा 156 (3 ) के तहत तमाम मामलों का वाद लंबित रहता है । तो आखिरकार यह माना जाए कि जिले में पूरा एक सिस्टम चल रहा है जिसमें किस मामले में रिपोर्ट दर्ज करनी है और किस मामले में नहीं दर्ज करनी है इसका पूरा खाका हर थाना पुलिस चौकी के पास उपलब्ध है । अन्यथा क्या कारण है कि लगातार तमाम थानों की पुलिस की शिकायत के बाद भी उन थानेदारों पर कोई कारवाही नहीं होती है और थानेदार मनमर्जी से अपना थाना चलाने में व्यस्त रहते हैं। क्योंकि वह जानते हैं कि फरियादी कहां तक जाएगा आखिरकार उसे लौटकर तो मेरा ही पास आना है।

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