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जीवत्पुत्रिका व्रत 2021: आखिर क्यों है खास यह व्रत, जानिए जीवत्पुत्रिका व्रत के महत्व के बारे में, और जीवत्पुत्रिका व्रत की विधि

जीवत्पुत्रिका व्रत 2021: पुत्र के आरोग्यता तथा कल्याण के लिए जीवत्पुत्रिका या जीवतिया व्रत का विधान है। इस बार पुत्रों की लंबी आयु के लिए माताएं जीवत्पुत्रिका का निर्जल व्रत 29 सितंबर बुधवार को रखेंगी। शास्त्रों के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पुत्र की लंबी आयु एवं कल्याण के लिए जीवत्पुत्रिका या जिमूतवाहन व्रत का विधान है।

वाराणसी से प्रकाशित हृषीकेश पंचांग के अनुसार 29 सितंबर दिन बुधवार को सूर्योदय छह बजकर चार मिनट और आश्विन कृष्णपक्ष अष्टमी का मान शाम चार बजकर 55 मिनट तक है। इस दिन वरियान योग भी है। चंद्रमा की स्थिति मिथुन राशि पर जिसका स्वामी बुध ग्रह है और बुधवार के दिन ही है। इसलिए श्रेष्ठ योग बन रहा है। जो व्रत के फल को कई गुना वृद्धिकारक बनाएगा।

जीवत्पुत्रिका व्रत का महत्व
पंडित शरद चंद्र मिश्र के अनुसार, आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पुत्र के आरोग्यता तथा कल्याण के लिए जीवत्पुत्रिका या जीवतिया व्रत का विधान है। धर्मशास्त्र की दृष्टि से यह व्रत स्त्रियों का है। प्रदोष व्यापिनी अष्टमी को अंगीकृत करते हुए आचार्यों ने प्रदोष काल या सायं काल में जीमूतवाहन के पूजन का विधान स्पष्ट शब्दों मे निर्दिष्ट किया है। इस व्रत का पारण अष्टमी में नही होता है। अष्टमी के बाद नवमी में ही पारण करना चाहिए।

जीवत्पुत्रिका व्रत की विधि
ज्योतिर्विद पंडित नरेंद्र उपाध्याय के अनुसार, व्रती महिलाओं को पवित्र होकर संकल्प के साथ प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजन स्थल को लीप दें और छोटा तालाब भी खोदकर बना लें। तालाब के निकट एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ा कर दें। जिमूतवाहन वाहन की कुश निर्मित मूर्ति, जल या मिट्टी के पात्र में स्थापित कर पीली और लाल रूई से उसे अलंकृत करें तथा धूप, दीप, अक्षत, फूल, माला एवं विविध प्रकार के नैवेद्यों से पूजन करें। मिट्टी या गाय के गोबर से चिल्होरिन (मादा चील) और सियारिन की मूर्ति बनाकर उसका मस्तक लाल सिंदूर से विभूषित कर दें। अपने वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए दिनभर उपवास कर बांस के पत्तों से पूजन करना चाहिए। पूजन के बाद व्रत माहात्म्य की कथा श्रवण करना चाहिए। अगले दिन दान-पुण्य के पश्चात व्रत का पारण करे l

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