खेल दिवस 2021: विदेशी खेलों में देशी खिलाड़ी अपना दमखम दिखाते हुए पदक भी जीत रहे हैं। विदेशी खेलों के प्रति खिलाड़ियों का रुझान भी तेजी से बढ़ रहा है। हॉकी, क्रिकेट, कुश्ती, एथलेटिक्स जैसे खेलों के अलावा बनारस में विदेशी खेल नेटबाल, फिस्टबाल, पिंचक सिलाट, कुंगफू, कराटे, कुराश, वूशु, ताइक्वांडो भी खिलाड़ियों के लिए विकल्प के रूप में उभरे हैं।
काशी में प्रतिभाएं तो बहुत हैं, लेकिन प्रशिक्षकों के सम्मान और उनकी जरूरतों पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। खेलों की संख्या जितनी हैं, काशी में उतने कोच नहीं हैं। जिस पर सरकारों को ध्यान देने की जरूरत है। खेल को लेकर देश के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का सहयोग जिस तरह से इस साल हुआ है, आगे भी ऐसे ही रहा तो आने वाले दिनों काशी खेल की राजधानी हो जाएगी। खिलाड़ियों की प्रतिभा में निखार आएगा। काशी में कई खेलो की संभावनाएं बढ़ी है। पहले हॉकी के लिए शिवपुर सिगरा स्टेडियम, जेपी मेहता कालेज और यूपी कॉलेज के मैदान ही अभ्यास के लिए थे। अब गांव गांव में खिलाड़ियों को प्रशिक्षण मिल रहा है।
सुरक्षित खेल मैदान और संसाधन समय पर मिले तो किसी भी खेल की प्रतिभा को निखरने में समय नहीं लगता। खेलों को बढ़ावा देने के लिए जमीनी स्तर खिलाड़ियों को प्रशिक्षण के लिए सेंटर खुल भी रहे हैं। प्रशिक्षक और पूर्व खिलाड़ी कहते हैं कि जितना उत्साह हॉकी, कुश्ती, एथलेटिक्स, मुक्केबाजी जैसे ओलंपिक स्तर के खेलों का है, उतना ही मार्शल आर्ट, वालीबाल, बास्केटबाल, फुटबाल, वुशू जैसे कई विदेशी खेलों पर भी है। उजबेकिस्तान के प्राचीन खेल कुराश के लिए काशी में भूमिका बना चुके अजीत पाल बताते हैं, काशी में कुराश के करीब 100 खिलाड़ी हैं। इसमें 10 खिलाड़ियों ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में प्रतिभाग किया है। हाल ही में यूपी ओलंपिक संघ की की ओर मान्यता मिलने के बाद खेल को लेकर खिलाड़ियों में काफी उत्साह है।
वालीबाल से मिलते जुलते यूरोपियन खेल फिस्टबॉल के कोच गोविंद कहते हैं, बनारस में इस खेल की शुरुआत पिछले साल हुई थी। विश्व स्तर तक फिस्टबॉल में प्रतियोगिताएं होती है। बनारस में एक दर्जन राष्ट्रीय खिलाड़ी हैं। हालांकि खेल से जुडे़ संसाधन और खिलाड़ियों के प्रोत्साहन की कमी है, लेकिन इसके बावजूद खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। आत्मरक्षा का गुर सिखाने बाले मार्शल आर्ट प्रशिक्षक अजीत श्रीवास्तव का कहना है कि काशी में पिंचक सिलाट, कुंगफू, कराटे, वूशु, ताइक्वांडो, जूडो जैसे आत्मरक्षा से जुडे़ खेलों में बेटियों का रुझान बढ़ा है। खेलों को कई संगठनों का सहयोग मिलने से खिलाड़ियों का उत्साह भी बढ़ा है। मार्शल आर्ट के प्रशिक्षकों की कमी भी शहर में नहीं है। शहर से गांव तक में खिलाड़ियों को आत्मरक्षा के गुर सिखाए जा रहे हैं।